जीवन नाम है परिवर्तन का ,
सुख से दुःख और फिर दुःख से सुख का I
गर्मी से सर्दी और फिर सर्दी से गर्मी का ,
सुबह से शाम और फिर शाम से सवेरे का I
काल चक्र है ये जीवन का ,
जीवन नाम है परिवर्तन का II
ऋतुऐं होती है परिवर्तित I
समय चक्र है घूमता नियमित II
तख्ते – ताज बदलते है नित I
नए आयाम बनते है नित II
जरुरत है सामाजिक परिवर्तन की I
मानसिकता को बदलने की II
नारी को सम्मान देने की I
जातिवादिता भूलने की II
जरुरत है भूलते रिश्तों को मान देने की I
तकनिकी में घिर के भी अपनों के साथ होने की II
परिवर्तन रिश्तों में क्यों आया है ?
माता पिता का सम्मान , भाई का प्यार क्यों हुआ पराया है ?
परिवर्तन लाना है तो उस गूढ़ मानसिकता में लाओ,
अपनों से दुरी नहीं , अपनों का प्यार पाओ II
प्यार ही जीवन का सत्य है , उसे न गवाओ I
अपने फायदे के लिए परिवर्तित ना हो जाओ II
निरंतर परिवर्तन नियम है प्रकृति का I
ना की परिवर्तन नैतिकता की प्रवृति का II
मनसा खरबंदा
५ – स
ए वी ऍम, बांद्रा (पूर्व)