बस हमारी निकली ६ बजे
सब रंगीन कपड़ो में सजे |
उस वातावरण ने हमें घेर लिया
हमारी सारी थक्कान को मिटा दिया|
हममें चाय एक नया उत्साह
सब के मुँह पर सिर्फ एक ही शब्द ” वाह !”
जिसके पहले कोई काम हमें सुझा
हमने की भरपेट पूजा !
पानी पूरी, लस्सी और भेल
फिर खेलें हमने अनेक खेल |
बस में वापिस हम बैठे
खेती बाड़ी को देखने |
रास्ते में हमने देखे अनेक बगीचे
तालाब सरोवर थे जिसके नीचे |
विशाल पहाड़ो को देख मेरा मन हरता
अत्यधिक खुशियों से मेरा ह्रदय भरता |
नीला गगन ऐसा जैसे कांच का शीशा
ऐसे नज़रो को देखने की मेरी थी बरसो से आशा |
ऐसा हसीन सफर था मेरा
की जाने कब रत का अँधेरा छा गया |
कभी न भूलूंगी मैं यह नज़ारे
सुन्दर, खुशहाल और पल प्यारे |