चौदह साल हो गए ,
अब पता चल रहा है,
कि उस आंचल में ,
उन आंखों में ,
कितना प्यार ,
कितना दर्द,
कितनी शीतलता व मधुरता थी।
उन कटी लकीरों में ,
उस कर्कश आवाज़ में ,
उन चंचल पैरों में ,
कितनी गहराई और मधुरता थी।
एक पूरी ज़िन्दगी की ,
झलक उन नैनों में बसी थी।
घर के आलावा कुछ न था उसका ,
पर खुद की दुनिया में मस्त रहती थी।
कभी शिकायत नहीं की ,
लोगों ने सोचा दम नहीं है ,
पर वो दूसरों को दुःखी कैसे देख सकती थी?
आखिर वह माँ है,
वह माँ जो हाथ के स्पर्श से
एक बड़े जुर्म को शांत कर सकती है।।
उसने कभी अपना हिस्सा नहीं माँगा ,
कोई इनाम नहीं चाहा ,
आखिर क्यों वह अपनी इस निस्वार्थ
परवरिश के लिए प्रेम – स्नेह न मांगे?
क्योंकि वह , वो है जिसे समझने को कहे ,
तो शब्द झुक जाएँ ,
जिसे निहारने के लिए कहे ,
तो फूल – माला टूट कर बिखर जाए,
जिसे नीचे डुबाने को कहे ,
तो लहर हटकर क्षमा मांगें
जिसे अनदेखा करें,
तो उस पल में ज्वाला उभर जाए।
यह वह है जिसे आप न तो दिखावे से बता सकते हैं ,
न ही उसकी मन्नत को मिट्टी में मिला सकते हैं।
आखिर वह माँ हैं।
– Manya Chopra, 9 ‘C’
AVM JUHU